वो भी गुमराह हो गया होगा मेरा बद-ख़्वाह हो गया होगा मेरे हक़ में जो बोल उट्ठा है दर्द-आगाह हो गया होगा सज्दा-ए-शौक़ जो अदा न हुआ संग-ए-दरगाह हो गया होगा हादसे की हमें ख़बर ही नहीं ख़ैर नागाह हो गया होगा वाक़िआ' आप तक नहीं पहुँचा नज़्र-ए-अफ़्वाह हो गया होगा सूरत-ए-हाल देख कर वो भी तेरे हमराह हो गया होगा वक़्त के साथ साथ उस का क़द और कोताह हो गया होगा इस बरस भी न आ सका 'फ़रताश' वक़्फ़-ए-तंख़्वाह हो गया होगा