तीर नज़रों के हम पे चलाते रहो झूटी उल्फ़त सही पर जताते रहो इस तरह प्यार मुझ से निभाते रहो दिल में ख़ुश्बू के जैसे बसाते रहो मैं ख़फ़ा हूँ कभी तुम ख़फ़ा हो कभी प्यार का सिलसिला यूँ बढ़ाते रहो मैं ने तो लिख दिया नाम दिल पे तिरे गर मिटाना हो मुमकिन मिटाते रहो आ न जाए गुमाँ मुझ में झूठा कोई तुम हक़ीक़त का दर्पन दिखाते रहो पत्थरों को न एहसास होगा कभी रात दिन अश्क चाहे बहाते रहो