वो दिल भी जलाते हैं रख देते हैं मरहम भी क्या तुर्फ़ा तबीअत है शोला भी हैं शबनम भी ख़ामोश न था दिल भी ख़्वाबीदा न थे हम भी तन्हा तो नहीं गुज़रा तन्हाई का आलम भी छलका है कहीं शीशा ढलका है कहीं आँसू गुलशन की हवाओं में नग़्मा भी है मातम भी हर दिल को लुभाता है ग़म तेरी मोहब्बत का तेरी ही तरह ज़ालिम दिलकश है तिरा ग़म भी इंकार-ए-मोहब्बत को तौहीन समझते हैं इज़हार-ए-मोहब्बत पर हो जाते हैं बरहम भी तुम रुक के नहीं मिलते हम झुक के नहीं मिलते मालूम ये होता है कुछ तुम भी हो कुछ हम भी पाई न 'शमीम' अपने साक़ी की नज़र यकसाँ हर आन बदलता है मय-ख़ाने का मौसम भी