वो दिल समो ले जो दामन में काएनात का कर्ब उठा सका न ख़ुद अपने तसव्वुरात का कर्ब निकलना ख़ुल्द से आदम का बन गया क्या चीज़ ये ज़िंदगी है कि है इक वारदात का कर्ब अँधेरे डसते रहे शम्अ' झिलमिलाती रही कहीं तो कह न सकें ज़िंदगी की रात का कर्ब पनाह के लिए ख़्वाबों की गोद ढूँढती है हयात सह न सकी अपने तजरबात का कर्ब बड़ा अजीब है ख़ुद से ये मा'रका अपना कहाँ हर एक से उट्ठा शिकस्त-ए-ज़ात का कर्ब है इंतिज़ार में इक इंक़लाब आख़िर के ज़मीं लिए हुए कितने तग़य्युरात का कर्ब ये जीत कम है कि ग़म रास आ गया वर्ना ख़ुशी ख़ुशी कोई झेला है अपनी मात का कर्ब सिमट के बन गया होंटों पे नाला-ए-सहरी तमाम दिन की अज़िय्यत तमाम रात का कर्ब जिगर-गुदाज़ थे 'हुर्मत' कुछ और ग़म भी मगर मिटा गया हमें औज-ए-तख़य्युलात का कर्ब