ख़मोशियों में सदा से लिखा हुआ इक नाम सुनो है दस्त-ए-दुआ से लिखा हुआ इक नाम हर इक की अपनी ज़बाँ है न पढ़ सकेगा बशर ज़मीं पे आब-ओ-हवा से लिखा हुआ इक नाम जो सुन सको तो सुनो ख़ुशबुओं के लब पर है गुलों पे बाद-ए-सबा से लिखा हुआ इक नाम चमकता रहता है जब तक कुरेदी जाए न राख चिता पे दस्त-ए-फ़ना से लिखा हुआ इक नाम अजीब बात है पढ़िए तो हर्फ़ उड़ने लगें बदन बदन पे क़बा से लिखा हुआ इक नाम कभी कभी तो बरसते हुए भी देखा है फ़लक पे काली घटा से लिखा हुआ इक नाम मगर ये क़ुव्वत-ए-बीनाई किस तरह आई हवा में देखा हवा से लिखा हुआ इक नाम कभी खुलेंगी अगर मुट्ठियाँ तो देखेंगे हथेलियों पे हिना से लिखा हुआ इक नाम ये काएनात तो लगता है 'नूर' जैसे हो किसी की ख़ास अदा से लिखा हुआ इक नाम