वो फैले सहराओं की जहाँ-बानियाँ कहाँ हैं ये सब तो घर जैसा है वो वीरानियाँ कहाँ हैं वही उम्मीदें शिकस्त-ए-दिल की वही कहानी वो जाँ-ब-कफ़ दोस्तों की क़ुर्बानियाँ कहाँ हैं सुलग रहे हैं ज़मीं ज़माँ फिर भी पूछते हो शरर-फ़रोशों की क़हर-सामानियाँ कहाँ हैं क़दम क़दम पर फ़रेब पग पग नुकीले काँटे चमन तक आने की अब वो आसानियाँ कहाँ हैं 'रज़ा' ये महफ़िल तो सर्द ही होती जा रही है कहाँ हैं शमएँ वो शोला-सामानियाँ कहाँ हैं