वो फूल जो मुस्कुरा रहा है शायद मिरा दिल जला रहा है छुप कर कोई देखता है मुझ को आँखों में मगर समा रहा है मैं चाँद के साथ चल रहा हूँ वो मेरी हँसी उड़ा रहा है शायद किसी दौर में वफ़ा थी ये दौर तो बेवफ़ा रहा है सौ रंग हैं ज़िंदगी के लेकिन इंसान फ़रेब खा रहा है तस्वीर बने तो मुझ से कैसे हर नक़्श मुझे मिटा रहा है जो लम्हा पयाम है फ़ना का चुप-चाप क़रीब आ रहा है तूफ़ाँ ने भी आँख खोल दी है साहिल भी नज़र बचा रहा है फ़नकार कहूँ उसे तो कैसे तख़्लीक़ को जो मिटा रहा है तक़दीर मिटा चुकी थी जिस को तदबीर का राज़ पा रहा है आवाज़ से आग लग रही है मुतरिब है कि गीत गा रहा है एहसास-ए-शिकस्त-ओ-कामरानी आईने कई दिखा रहा है वो ख़ाक-नशीं 'ज़फ़र' है यारो जो सू-ए-फ़लक भी जा रहा है