वो गदा-गरान-ए-जल्वा सर-ए-रहगुज़ार चुप थे जिन्हें तुझ से थीं उमीदें वो उमीद-वार चुप थे वो क़तार-ए-गुमरहाँ थी लिए मिशअलें रवाँ थी वो जो मंज़िल-आश्ना थे वो पस-ए-ग़ुबार चुप थे ये अजीब सानेहा था जिसे चश्म-ए-गुल ने देखा कि तुयूर-ए-दाम-दीदा सर-ए-शाख़-सार चुप थे किसे जुरअत-ए-तसल्ली कि वो बात ही थी ऐसी शब-ए-इंतिज़ार चुप थी मिरे ग़म-गुसार चुप थे हमें कम मिलीं सज़ाएँ कि ज़ियादा थीं ख़ताएँ तिरे सहव क्या गिनाएँ तिरे शर्मसार चुप थे ये दिल-ओ-नज़र फ़िगाराँ यही थी वो वज़्अ'-दाराँ पस-ए-कू-ए-यार गिर्यां सर-ए-कू-ए-यार चुप थे हुई हम पे संग-बारी मगर अपनी वज़्अ'-दारी कि थी 'शाज़' जिन से यारी वही अपने यार चुप थे