वो ग़म मिरी पलकों से नुमायाँ भी नहीं है यूँ जश्न हुआ है कि चराग़ाँ भी नहीं है पत्थर भी कोई मारने वाला नहीं मिलता आईना किसी अक्स से हैराँ भी नहीं है इक जोश-ए-तलब है कि उसे ढूँड रहा हूँ मिल जाएगा वो शख़्स ये इम्काँ भी नहीं है शहरों से हुईं इश्क़ की बे-ताबियाँ रुख़्सत दीवानगी-ए-दिल को बयाबाँ भी नहीं है लौट आएगा इक रोज़ यही ख़्वाब में अपने यूँ उस से ब-ज़ाहिर कोई पैमाँ भी नहीं है आँखों में बहुत रोज़ से आँसू नहीं आए दरिया का मिरे दश्त में इम्काँ भी नहीं है मत देख मिरे चेहरे पे इस हिज्र का मंज़र नज़्ज़ारा तिरी आँख के शायाँ भी नहीं है ले जाएँगी मंज़िल पे उसी दोस्त की आँखें रस्ते में मुसाफ़िर के चराग़ाँ भी नहीं है इक दर्द-ए-तमन्ना को लिए फिरता हूँ 'आदिल' इस सच्ची कहानी का तो उनवाँ भी नहीं है