वो ग़ुंचा हूँ जो बिन खिले मुरझाए चमन में वो अश्क हूँ जो ज़ीनत-ए-दामाँ नहीं होता ज़िंदाँ में भी टकराए हैं ज़ंजीर के हल्क़े कब जोश-ए-जुनूँ दस्त-ओ-गरेबाँ नहीं होता क्यूँ ख़ाल-ए-सियह आरिज़-ए-गुलगूँ पे है माइल हिन्दू तो कोई माइल-ए-क़ुरआँ नहीं होता जौहर न हों तो तेग़ है फ़ौलाद का टुकड़ा इंसान फ़क़त कहने से इंसाँ नहीं होता दीवाने को तेरे नहीं कुछ हू की ज़रूरत मुहताज ब-संग-ए-कफ़-ए-तिफ़्लाँ नहीं होता