परवरदिगार दे मुझे ग़ैरत-शिआ'र आँख By Ghazal << वो ग़ुंचा हूँ जो बिन खिले... मुसलमाँ ग़ौर कर क्यूँ आज ... >> परवरदिगार दे मुझे ग़ैरत-शिआ'र आँख पास-ओ-लिहाज़-ए-मेहर की सरमाया-दार आँख क्या शान है फ़रासत-ए-मोमिन की देखना अनवार-ए-किब्रिया की है मन्नत-गुज़ार आँख गर आँख दे ख़ुदा तो बसीरत अता करे ख़ाकिस्तर-ए-जहाँ से न हो पुर-ग़ुबार आँख Share on: