वो गुनगुनाते रास्ते ख़्वाबों के क्या हुए वीराना क्यूँ हैं बस्तियाँ बाशिंदे क्या हुए वो जागती जबीनें कहाँ जा के सो गईं वो बोलते बदन जो सिमटते थे क्या हुए जिन से अँधेरी रातों में जल जाते थे दिए कितने हसीन लोग थे क्या जाने क्या हुए ख़ामोश क्यूँ हो कोई तो बोलो जवाब दो बस्ती में चार चाँद से चेहरे थे क्या हुए हम से वो रत-जगों की अदा कौन ले गया क्यूँ वो अलाव बुझ गए वो क़िस्से क्या हुए मुमकिन है कट गए हों वो मौसम की धार से उन पर फुदकते शोख़ परिंदे थे क्या हुए किस ने मिटा दिए हैं फ़सीलों के फ़ासले वाबस्ता जो थे हम से वो अफ़्साने क्या हुए खम्बों पे ला के किस ने सितारे टिका दिए दालान पूछते हैं कि दीवाने क्या हुए ऊँची इमारतें तो बड़ी शानदार हैं लेकिन यहाँ तो रेन-बसेरे थे क्या हुए