वो हम से हो गया है बे-ख़बर कुछ बदलते मौसमों का है असर कुछ कहीं साए में रुक कर क्या करेंगे चलो अब तेज़ बाक़ी है सफ़र कुछ हवा-ए-तुंद का ये काम देखो न छोड़ा शाख़ पर बाक़ी समर कुछ भटकते फिर रहे हैं रास्तों में बसारत से तही अहल-ए-नज़र कुछ अगरचे शहर तो अपना है लेकिन पराए से हैं क्यूँ दीवार-ओ-दर कुछ अभी दिल में उड़ानों की है ख़्वाहिश सलामत हैं हमारे बाल-ओ-पर कुछ अभी 'शाहिद' लुटाओ ग़म की दौलत अभी हैं आँख में लाल-ओ-गुहर कुछ