वो मुझ में था निहाँ मैं देखता क्या पस-ए-दीवार-ए-जाँ मैं देखता क्या किताब-ए-ज़िंदगी ज़ेर-ए-नज़र थी हदीस-ए-दिलबराँ मैं देखता क्या मुझे चलना था अपने रास्ते पर निशान-ए-रफ़्तगाँ मैं देखता क्या नज़र में था वो महताब-ए-तमन्ना जमाल-ए-कहकशाँ मैं देखता क्या फ़ना की ज़द पे था बाज़ार-ए-दुनिया यहाँ सूद-ओ-ज़ियाँ मैं देखता क्या मिरी आँखें भरी थीं आँसुओं से सर-ए-शहर-ए-फ़ुग़ाँ मैं देखता क्या ठिकाना था मिरा दश्त-ए-जुनूँ में ख़िरद की बस्तियाँ मैं देखता क्या मिरी मजबूरियाँ भी कम नहीं थीं तिरी मजबूरियाँ मैं देखता क्या उसे जब इम्तिहाँ लेना नहीं था निसाब-ए-इम्तिहाँ मैं देखता क्या मिरी पर्वाज़ थी 'शाहिद' फ़लक पर ज़मीं की पस्तियाँ मैं देखता क्या