वो जल्वा-गाह-ए-नाज़ में जिस वक़्त आ गए नाज़-ओ-अदा से होश सभी के उड़ा गए दिल में वो आ के हसरत-ओ-अरमाँ जगा गए उम्मीद के चराग़ जला कर बुझा गए इस तरह अपना जल्वा-ए-ज़ेबा दिखा गए आ कर निगाह-ए-शौक़ से दिल में समा गए नख़्ल-ए-मुराद फूलों से मेरा सजा गए वो आ गए तो सारी बहारों पे छा गए कब तक यूँही दिखाएँगे हम को वो सब्ज़-बाग़ रस्म-ए-वफ़ा निभानी थी जिन को निभा गए हम अर्ज़-ए-मुद्दआ भी न कुछ उन से कर सके आया जो दिल में उन के हमें वो सुना गए मालूम था न इतने तलव्वुन मिज़ाज हैं वो हो गए उन्हीं के उन्हें जो भी भा गए सोज़-ए-दरूँ ने कर दिया जीना मिरा हराम इक आग ऐसी दीदा-ओ-दिल में लगा गए अरमाँ थे जितने जल के सभी ख़ाक हो गए दिल पर वो ऐसी बर्क़-ए-तबस्सुम गिरा गए तर्क-ए-तअल्लुक़ात में उन को लगी न देर औक़ात मेरी क्या है मुझे वो बता गए क़ाएम ख़ुमार उस का है 'बर्क़ी' अभी तलक अपनी निगाह-ए-नाज़ से वो जो पिला गए