वो जो आए थे बहुत मंसब-ओ-जागीर के साथ कैसे चुप-चाप खड़े हैं तिरी तस्वीर के साथ सिर्फ़ ज़िंदाँ की हिकायत ही पे मामूर नहीं एक तारीख़ सफ़र करती है ज़ंजीर के साथ अब के सूरज की रिहाई में बड़ी देर लगी वर्ना मैं घर से निकलता नहीं ताख़ीर के साथ तुझ को क़िस्मत से तो मैं जीत चुका हूँ कब का शायद अब के मुझे लड़ना पड़े तक़दीर के साथ अब किसी और गवाही की ज़रूरत ही नहीं जुर्म ख़ुद बोल रहा है तिरी तहरीर के साथ देखते कुछ हैं दिखाते हमें कुछ हैं कि यहाँ कोई रिश्ता ही नहीं ख़्वाब का ताबीर के साथ अब जहाँ तेरी इमारत की हदें मिलती हैं एक बुढ़िया का मकाँ था उसी जागीर के साथ ये तो होना ही था महताब-ए-तमाशा फिर भी कितने दिल टूट गए हैं तिरी तस्ख़ीर के साथ याद भी अब्र-ए-मोहब्बत की तरह होती है एक साया सा चला जाता है रहगीर के साथ