वो जो किसी का रूप धार कर आया था मेरे अंदर बसने वाला साया था वो दुख भी क्यूँ हम को तन्हा छोड़ गए क्या क्या छोड़ के हम ने जिन्हें अपनाया था ख़ुद तुम ने दरवाज़े बंद रक्खे वर्ना मैं इक ताज़ा हवा का झोंका लाया था मेरी इक आवाज़ से सारी टूट गई वो दीवारें जिन पर तू इतराया था वीराँ दिल में ग़म के प्रीत भटकते थे मेरी चुप पर किसी सदा का साया था इस में एक जनम-भर के दुख सिमटे थे वो आँसू जो पलकों पर लहराया था