वो काश वक़्त के पहरे को तोड़ कर आते जो महव-ए-ख़्वाब हैं उन को झिंझोड़ कर आते न उठती कोई निगाह-ए-ग़लत सर-ए-महफ़िल वो अपने जल्वे को घर अपने छोड़ कर आते उदास आँखों को देखा तो ये ख़याल आया चमन के फूलों से शबनम निचोड़ कर आते असा-ए-मूसा कभी हाथ लग गया होता फ़िरऔन-ए-वक़्त का सर हम भी फोड़ कर आते अगर थी चेहरे पे रौनक़ की आरज़ू उन को मुसीबतों की कलाई मरोड़ कर आते उधर न निकलेंगे वो नज़र-ए-बद का ख़दशा है ख़बर ये होती तो हम आँखें फोड़ कर आते सुना कि आज भी दानिशवरों में ख़ूब मची 'असर' भी आते तो हिम्मत बटोर कर आते