जीना अज़ाब क्यूँ है ये क्या हो गया मुझे किस शख़्स की लगी है भला बद-दुआ मुझे मैं अपने आप से तो लड़ा हूँ तमाम उम्र ऐ आसमान तू भी कभी आज़मा मुझे निकले थे दोनों भेस बदल के तो क्या अजब मैं ढूँडता ख़ुदा को फिरा और ख़ुदा मुझे पूछेंगे मुझ को गाँव के सब लोग एक दिन मैं इक पुराना पेड़ हूँ तू मत गिरा मुझे उस घर के कोने कोने में यादों के भूत हैं अलमारियाँ न खोल बहुत मत डरा मुझे