वो कितना टूट चुका है ये कोई जान न ले ग़म-ए-हयात तू और उस का इम्तिहान न ले नसीब होगी तुझे मंज़िल-ए-मुराद इक दिन किसी शजर का कोई भी तू साएबान न ले उसी पे छोड़ दे अब जो है काएनात का रब ये तेरा काम नहीं तू किसी की जान न ले तिरे अदू हैं तिरी घात में यहाँ हर सू तू इस नगर में किराए का अब मकान न ले मैं उस की बज़्म से तब तक न उठ्ठूँगा 'ताबाँ' मिरा वो मशवरा जब तक कि आज मान न ले