वो क्या गए पयाम-ए-सफ़र दे गए मुझे इक जज़्बा-ए-जुनून-ए-असर दे गए मुझे हर सम्त देखती है जो उन के जमाल को वो इक निगाह-ए-जल्वा-नगर दे गए मुझे हर-चंद कर्ब-ए-मर्ग है महसूस हर नफ़स लुत्फ़-ए-हयात-ए-इश्क़ मगर दे गए मुझे तस्वीर-ए-हुज़्न-ओ-यास बना कर चले गए लब-हा-ए-ख़ुश्क ओ दीदा-ए-तर दे गए मुझे बेदार कर गए सहर-ओ-शाम-ए-ज़िंदगी आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-शाम-ओ-सहर दे गए मुझे जमती नहीं निगाह किसी चीज़ पर भी अब इक ख़ीरगी-ए-ताब-ए-नज़र दे गए मुझे अर्ज़-ए-हदीस-ए-शौक़ पे शरमा के रह गए कितना हसीं जवाब मगर दे गए मुझे मेरे सुकून-ए-क़ल्ब को ले कर चले गए और इज़्तिराब-ए-दर्द-ए-जिगर दे गए मुझे महरूम-ए-शश-जहात निगाहों को कर गए बस इक निगाह-ए-जानिब-ए-दर दे गए मुझे 'अख़्तर' वो आए और चले भी गए मगर इक लुत्फ़-ए-इज़्तिराब-ए-असर दे गए मुझे