ज़िंदगी के साज़ पर जलते हुए नग़्मात हैं रक़्स-फ़रमा शो'ला-ए-दिल की तरह ज़र्रात हैं हैं बगूलों की तरह तार-ए-नफ़स बहके हुए ज़िंदगानी की जुनूँ-पर्वर सभी आयात हैं नाज़-फ़रमा जिन की ताबानी पे थी अक़्ल-ए-बशर आज वो ख़ुरशीद-ओ-अंजुम कितने कम-औक़ात हैं हम कि थे दिलदारी-ए-मौज-ए-हवादिस पर निसार शोर-ए-तूफ़ाँ से अयादत दिल-नशीं जज़्बात हैं जिन को रखती थी मोअत्तर तेरी यादों की शमीम तेग़ की झंकार में गुम वो हसीं दिन-रात हैं वक़्त की मेहराब में इक शम-ए-नौ रौशन करें राज़दान-ए-आरज़ू हम वारिस-ए-आफ़ात हैं कौन ढूँडे गर्मी-ए-रुख़्सार-ए-ख़ूबाँ ऐ 'सरोश' आतिश-ए-पैकार से शो'ला-फ़गन जज़्बात हैं