वो ले के दिल को ये सोची कहीं जिगर भी है नज़र टटोल रही है कि कुछ इधर भी है हँसो न खोल के ज़ुल्फ़ें बला-नसीबों पर बला-नसीब जहाँ में तुम्हारा सर भी है वो बिगड़े सुन के मगर सुन तो ली हमारी आह ये बे-असर ही नहीं बल्कि बा-असर भी है जुनून को वो बनावट समझ रहा है अभी ये सुन लिया है किसी से कि मेरे घर भी है फ़िराक़ में ये नया तजरबा हुआ मुझ को कि एक रात ज़माने में बे-सहर भी है ये कह के हश्र से भागा मैं अपना जी ले कर इलाही ख़ैर यहाँ तो वो फ़ित्ना-गर भी है मुझे तो आप में इस वक़्त तुम नहीं मिलते कहाँ हो 'शौक़' कुछ अपनी तुम्हें ख़बर भी है