आ कर नजात बख़्श दो रंज-ओ-मलाल से दिल मुतमइन नहीं है तुम्हारे ख़याल से उफ़ गर्दिश-ए-नसीब कि होश्यार हो के भी महफ़ूज़ रह सके न ज़माने की चाल से ये क्यूँ कहूँ कि मुझ से उन्हें प्यार है मगर इक वास्ता ज़रूर है मेरे ख़याल से था कौन ये ख़बर नहीं बस इतना याद है टकराई थी निगाह किसी के जमाल से दिल-बस्तगी की उस से कोई क्या करे उमीद जो खेलता रहा हो दिल-ए-पाएमाल से ऐसा न हो कि ऐसे ही बन जाएँ आप भी मत कीजिए गुरेज़ किसी ख़स्ता-हाल से जाता रहेगा 'शौक़' तड़पने का अब मज़ा ग़म बढ़ रहा है आज हद-ए-ए'तिदाल से