वो मारका कि आज भी सर हो नहीं सका मैं थक के मुस्कुरा दिया जब रो नहीं सका इस बार ये हुआ तिरी यादों की भीड़ में हर गाम ख़ुद को मिल गया मैं खो नहीं सका जागा हूँ गहरी नींद से लेकिन अजीब बात ये लग रहा है जैसे कि मैं सो नहीं सका उग आई घास इश्क़ के मलबे पे हर तरफ़ हम दोनों में से कोई उसे धो नहीं सका जादू-नगर है कोई मिरा अंदरूँ जहाँ होता रहा है वो जो कभी हो नहीं सका