वो मौत का मंज़र जो था दिन रात वही है मुँह से न कहो सूरत-ए-हालात वही है लफ़्ज़ों के उलट फेर से बदलेगा न मतलब इमदाद जिसे कहते हो ख़ैरात वही है गुल करना चराग़ों का तो इक खेल है उस का वाज़ेह है पस-ए-पर्दा-ए-ज़ुल्मात वही है ज़ंजीर में मौसम की हैं जकड़े हुए दिन रात सर्दी वही गर्मी वही बरसात वही है हम ने तो इसी तरह गुज़ारे हैं शब-ओ-रोज़ अपने लिए हर दिन वही हर रात वही है कुछ मेरे ही मानिंद है तर्ज़-ए-सुख़न उस का अंदाज़-ए-इशारात-ओ-किनायात वही है दोनों ही तरफ़ आग बराबर की है 'मोहसिन' दोनों ही तरफ़ गर्मी-ए-जज़्बात वही है