वो मेरे क़ल्ब को छेदेगा कब गुमान में था जो एक तीर मिरे दोस्त की कमान में था वो ज़ेर-ए-साया-ए-अल्ताफ़-ए-बाग़बान में था जो आशियाना ज़द-ए-बर्क़-ए-बे-अमान में था फ़िगार लय से हुआ मेरी सीना-ए-नय भी नफ़स नफ़स तिरी चाहत का इम्तिहान में था ये मोजज़ा था यक़ीनन तिरी मोहब्बत का जो औज-ए-फ़िक्र-ओ-तख़य्युल मिरे बयान में था वो जिस ने धूप की परछाईं तक नहीं दाबी उसे समझते हो हर लम्हा साएबान में था मुख़ालिफ़ों को भी अपना बना लिया तू ने अजीब तरह का जादू तिरी ज़बान में था नियाज़-ए-इश्क़ ने आख़िर उठा दिया 'आतिश' वो एक पर्दा सा हाएल जो दरमियान में था