वो मेरे क़ल्ब-ओ-रूह को शादाब कर गया फिर इस तरह गया मुझे बेताब कर गया काजल भी नींद का मिरी आँखों से ले उड़ा ख़्वाबों में आ के वो मुझे बे-ख़्वाब कर गया उस ने तो इज़्तिराब के मा'नी सुझा दिए ऐसी निगाह की मुझे बेताब कर गया जिंस-ए-गिराँ समझ के नहीं देखता कोई मुझ को वो एक जौहर-ए-नायाब कर गया जौफ़-ए-सदफ़ समझ के पड़ी अब्र की नज़र थी सत्ह-ए-आब पर वो तह-ए-आब कर गया बाक़ी रहे न बाम-ओ-दरीचे न ही फ़सील क्या हाल मेरे दिल का ये सैलाब कर गया साहिर था देवता था कोई बुत-तराश था पत्थर थी एक 'बानो' वो सीमाब कर गया