वो मेरे साथ चलने पर अगर तय्यार हो जाए भले मंज़िल की जानिब से मुझे इंकार हो जाए मिरा फ़न्न-ए-अदाकारी नुमायाँ हो के उभरेगा ज़रा तेरी कहानी में मिरा किरदार हो जाए नशात-अंगेज़ शामों का तसलसुल इस तरह टूटा कि गहरी नींद से यक-दम कोई बेदार हो जाए अगर अपनी मधुर आवाज़ में नग़्मा सुना दे वो तो राह-ए-महफ़िल-ए-याराँ ज़रा हमवार हो जाए अगर वो इक नज़र देखे मिरे जज़्बे की सच्चाई नसीहत छोड़ कर नासेह मिरा ग़म-ख़्वार हो जाए तिरी आँखें बताती हैं तुझे मुझ से मोहब्बत है मगर दिल की तसल्ली को ज़रा इज़हार हो जाए समझ लो तीरगी देरीना साथी हो गई 'आदिल' चराग़-ए-जाँ जलाना जब तुम्हें दुश्वार हो जाए