वो मेरे साथ चला सर से धूप ढलने तक हवा भी दोस्त रही बस चराग़ जलने तक किसे ख़बर थी कि सूरज को शाम डस लेगी हमारे बर्फ़ से दिल में लहू पिघलने तक जला जब अपना ही घर अपने सामने तो खुला हमारी कोशिशें सारी हैं हाथ मलने तक बता मुझे मिरे हमदम तू सोचता क्या है मैं बा-वफ़ा हूँ फ़क़त रुख़ तिरा बदलने तक जहान-ए-वक़्त की रौ में थे संग की सूरत क़दम क़दम पे लगीं ठोकरें सँभलने तक सदा-ए-तीरगी 'सत्तार' सुन रहा हूँ मैं मिरा चराग़ है रौशन लहू के जलने तक