वो मिरा होगा ये सोचा ही नहीं By Ghazal << सच कह 'रज़ा' ये क... उसी ज़मीन उसी आसमाँ के सा... >> वो मिरा होगा ये सोचा ही नहीं ख़्वाब ऐसा कोई देखा ही नहीं यूँ तो हर हादसा भूला लेकिन उस का मिलना कभी भूला ही नहीं मेरी रातों के सियह आँगन में चाँद कोई कभी चमका ही नहीं ये तअल्लुक़ भी रहे या न रहे दिल-क़लंदर का ठिकाना ही नहीं Share on: