वो नक़्श-ए-पा हैं कोई दूसरा चले तो गिरे तिरे क़दम पे तिरा आश्ना चले तो गिरे मुझे है इल्म-ए-तख़य्युल की तेज़-गामी का तिरे ख़याल में बैठा हुआ चले तो गिरे न सोची बात जो तू ने वो लिख न जाऊँ कहीं क़लम ये तेरे लिए सोचता चले तो गिरे क़ुबूल कर लिया क़ब्रों ने सारी लाशों को यहाँ निगाह कोई अब उठा चले तो गिरे ये बे-ख़ुदी में सँभलना तो सहल है 'अख़्तर' हमारी राह कोई पारसा चले तो गिरे