वो रत-जगों का भी मुझ से हिसाब माँगता है वो अपना खोया हुआ क्यों शबाब माँगता है अजीब शख़्स मिला है रह-ए-मोहब्बत में जो बात बात का मुझ से जवाब माँगता है बहुत ही शोख़ है वो मुझ से शाम होते ही ख़ुद अपनी आँखों की मुझ से शराब माँगता है वो चाहता है मुझे टूट कर समझती हूँ मगर वो क्यों मिरा मुझ से हिजाब माँगता है उसी से इश्क़ मैं करती हूँ 'सादिया' लेकिन वो साँस साँस का मुझ से हिसाब माँगता है