हर क़दम पर बिखर बिखर जाना वो मिरा शाम ही से घर जाना रोज़ जाना तिरी गली की तरफ़ और हवाओं से पेशतर जाना आरज़ू एक फूल की है कि वो हमारा शजर शजर जाना याद आते हैं पर ख़यालों के कितनी ऊँची उड़ान पर जाना इस क़दर चाहना उसे दिल से अपनी सोचों से आप डर जाना डूब जाना कभी इक आँसू में कभी दरिया को पार कर जाना ढूँडते ढूँडते उजालों को रात की आँख में उतर जाना