वो रूठता है कभी दिल दुखा भी देता है मैं गिर पड़ूँ तो मुझे हौसला भी देता है वो मेरी राह में पत्थर की तरह रहता है वो मेरी राह से पत्थर हटा भी देता है बहुत ख़ुलूस झलकता है तंज़ में उस के वो मुझ पे तंज़ के नश्तर चला भी देता है मैं ख़ुद को भूल न जाऊँ भटक न जाऊँ कहीं वो मुझ को आइना ला कर दिखा भी देता है उसे अज़ीज़ हैं ग़ज़लें मिरी मिरे अशआ'र वो मेरे शे'र मुझी को सुना भी देता है