वो सामने हों और नज़र को ख़बर न हो बर्बाद इस क़दर भी शुऊर-ए-नज़र न हो तुझ से इलाज अगर न हो ऐ चारागर न हो राज़-ए-ग़म-ए-मरीज़ मगर दर-ब-दर न हो आँखें बिछी हुई हैं बहुत दूर दूर तक मुमकिन नहीं कि आप की ये रहगुज़र न हो मुझ पर बरस पड़े न कहीं बरहमी-ए-ज़ुल्फ़ जो तेरे सर बला है मिरे दिल के सर न हो तुझ से ही मेरे जज़्बा-ए-उल्फ़त में जान है ऐ ज़िंदगी हयात तिरी मुख़्तसर न हो है वुसअ'त-ए-निगाह को कुछ और जुस्तुजू ऐ हद्द-ए-काएनात तू हद्द-ए-नज़र न हो राह-ए-वफ़ा का लुत्फ़ भी कुछ चल के देखिए इस रहगुज़र पे आप का शायद गुज़र न हो जज़्बात-ए-दिल को लाख छुपाते हो तुम मगर इस बज़्म में कहीं कोई अहल-ए-नज़र न हो क्या हो गया है तुझ को ख़ुदा जाने ऐ 'ज़की' दिल में कोई हो और नज़र को ख़बर न हो