वो वस्ल की लज़्ज़त में गुम है वो सोज़-ए-जुदाई क्या जाने वो रोग पराया क्या समझे वो प्रीत पराई क्या जाने परवाना-ए-हुस्न का शैदाई पापी भँवरा रस का लोभी चाहत को सौदाई समझे उस को हरजाई क्या जाने महफ़िल में जिसे मा'लूम नहीं एहसास की करवट क्या शय है वो दिल की सूनी वादी में ग़म की अंगड़ाई क्या जाने ये ख़ाक-आलूद जवाँ चेहरे गुल जिन की क़स्में खाते हैं जो आराइश पर मरता हो उन की रा'नाई क्या जाने 'आरिफ़' अपना राज़-ए-उल्फ़त यूँ है जैसे मुँह-बंद कली ये भेद ज़माना क्या समझे ये राज़ ख़ुदाई क्या जाने