वो यक-ब-यक उसे दल में उतारने का अमल वो अपनी ज़ात पे शब-ख़ून मारने का अमल हज़ार वसवसे दिल में और इक दहकता अलाव हयात-ए-दश्त में रातें गुज़ारने का अमल बस एक ख़ोशा-ए-गंदुम और ऐसी दर-ब-दरी वो आसमाँ को ज़मीं पर उतारने का अमल ये उमर मेज़ है गवय्या क़िमार-ख़ाने की बस एक जीत की ख़्वाहिश में हारने का अमल वो बंद ख़ुशबू का बाद-ए-सबा के वो नाख़ुन कली के जिस्म से कपड़े उतारने का अमल ग़ज़ब का शोर मचाते होए ये सन्नाटे वो बे-सदा भी किसी को पुकारने का अमल हुइ है शाम फिर अश्कों से इक वज़ू हो 'नदीम' फिर एक रात सितारे शुमारने का अमल