वुसअतें महदूद हैं इदराक-ए-इंसाँ के लिए वर्ना हर ज़र्रा है दुनिया चश्म-ए-इरफ़ाँ के लिए ऐ ख़िज़ाँ तू शौक़ के सारा चमन बर्बाद कर चंद फांसें छोड़ जा मेरी रग-ए-जाँ के लिए दूर पहुँचीं शोहरतें रफ़्तार सेहर-आसार की खुल गए रस्ते तिरे हुस्न-ए-ख़रामाँ के लिए फूल गुलशन के नहीं तो ख़ाक-ए-सहरा ही सही कुछ न कुछ तो चाहिए तसकीन-ए-दामाँ के लिए इस लिए देता दिल तुम को कि लो और भूल जाओ मैं ने इक तस्वीर दी है ताक़-ए-निस्याँ के लिए धज्जियाँ उड़ने को ऐ 'सीमाब' वुसअत चाहिए है कोई मैदान आशोब-ए-गरेबाँ के लिए