वा'दा फ़रमा के बे-क़रार किया उम्र-भर हम ने इंतिज़ार किया उस सरापा बहार ने दिल को नाज़-ओ-अंदाज़ से शिकार किया वो ही बे-रहम-ओ-बे-वफ़ा निकला जिस की बातों का ए'तिबार किया कूचा-ए-इश्क़ में हुआ ग़ाफ़िल दिल ने हर चंद होशियार किया वो हमारे ही हो गए गोया दिल ने कुछ इस तरह क़रार किया एक बेदर्द की मोहब्बत ने 'दर्द'-ए-मुज़्तर को अश्क-बार किया