वा'दे से मुकर जाना दग़ा है कि नहीं है तुम ही कहो कुछ इस की सज़ा है कि नहीं है क्या बात है आ धमके अचानक सर-ए-महफ़िल अंदाज़ तुम्हारा ये बजा है कि नहीं है देखा है तुम्हें चूमते आईने में ख़ुद को दुनिया में कोई चीज़ हया है कि नहीं है कुछ सर-फिरे तूफ़ान उठाते हैं तो इस में हाकिम की भी ख़ामोश रज़ा है कि नहीं है ग़ैरों के गिले-शिकवे न अपनों के मसाइल तन्हाई में जीने का मज़ा है कि नहीं है साइल ने सदा देने में ही देर लगा दी अब देखिए कुछ घर में बचा है कि नहीं है सुनता हूँ कि गर्दिश में है दीवानों की फ़ेहरिस्त देखूँ तो मिरा नाम लिखा है कि नहीं है फिर 'नज़्र' परख ग़ौर से यूनुस का वक़ू’आ मछली के शिकम में भी ख़ुदा है कि नहीं है