तिरी आमद ने सच हर ख़्वाब-ए-देरीना बना डाला हमारी अंजुमन को बज़्म-ए-ख़ासाना बना डाला अँधेरों से निकल कर रौशनी में पाँव रखते ही दिखा कर आँख तुम ने मुझ को बेगाना बना डाला बहुत चालाक है इस दौर का मजनूँ जो चुपके से सुना है उस ने सहरा में ही काशाना बना डाला किया जब 'अह्द तुम से राज़-दारी का तो फिर मैं ने ज़बाँ कर ली मुक़फ़्फ़ल दिल को तह-ख़ाना बना डाला हुकूमत ने किया जब मय-कदे का बंद दरवाज़ा तो रिंदों ने हसीं आँखों को मय-ख़ाना बना डाला शिकस्ता दिल का क्या करते सो इक तरकीब ये सूझी हर इक टुकड़े से मैं ने एक आईना बना डाला मुझे कहने लगे सब लोग दीवाना तो ज़ाहिर है ज़माने-भर को मैं ने 'नज़्र' दीवाना बना डाला