वफ़ा का ज़िक्र छिड़ा था कि रात बीत गई अभी तो रंग जमा था कि रात बीत गई मिरी तरफ़ चली आती है नींद ख़्वाब लिए अभी ये मुज़्दा सुना था कि रात बीत गई मैं रात ज़ीस्त का क़िस्सा सुनाने बैठ गया अभी शुरूअ किया था कि रात बीत गई यहाँ तो चारों तरफ़ अब तलक अंधेरा है किसी ने मुझ से कहा था कि रात बीत गई ये क्या तिलिस्म ये पल भर में रात आ भी गई अभी तो मैं ने सुना था कि रात बीत गई शब आज की वो मिरे नाम करने वाला है ये इंकिशाफ़ हुआ था कि रात बीत गई नवेद-ए-सुब्ह जो सब को सुनाता फिरता था वो मुझ से पूछ रहा था कि रात बीत गई उठे थे हाथ दुआ के लिए कि रात कटे दुआ में ऐसा भी क्या था कि रात बीत गई ख़ुशी ज़रूर थी 'तैमूर' दिन निकलने की मगर ये ग़म भी सिवा था कि रात बीत गई