वफ़ा थी इश्क़ था हद से गुज़र जाने की बातें थीं ये सब कुछ था मगर ये कुछ दिनों पहले की बातें थीं बयाँ कैसे हो लफ़्ज़ों में कि उन बहके से लम्हों में वो जिस्मों के सिमटने पैरहन खुलने की बातें थीं बहुत उल्फ़त मोहब्बत अहद-ओ-पैमाँ सुनते आए हैं खुला ये अब कहीं जा कर ये सब कहने की बातें थीं वो दिन भी थे कि तेरे लम्स की नरमी के क़िस्से थे बरहना सर पे तेरी ज़ुल्फ़ के साए की बातें थीं तिरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ में उलझ कर रह गए वर्ना मिरे शे'रों में इस दुनिया से कुछ आगे की बातें थीं