वफ़ाएँ उस के दर पर ढूँढता हूँ मैं सहरा में समुंदर ढूँढता हूँ न हों जिस में जुदा पत्ते शजर से कोई ऐसा दिसम्बर ढूँढता हूँ वो मेरे पास है जाने कहाँ है मैं उस को साथ ले कर ढूँढता हूँ हो जिस का फ़े'ल उस के क़ौल जैसा मैं इक ऐसा सुख़नवर ढूँढता हूँ मिरे अंदर अंधेरा है बला का कोई ख़ुर्शीद-पैकर ढूँढता हूँ खड़ा रहता हूँ आईने के आगे मैं अपना आप अक्सर ढूँढता हूँ फ़ुरात-ए-अश्क आँखों में सजा कर लब-ए-दरिया बहत्तर ढूँढता हूँ तलाश उस की ने पागल कर दिया है वो अंदर है मैं बाहर ढूँढता हूँ मुसलसल क़त्ल होता हूँ मैं 'सागर' कभी बाज़ू कभी सर ढूँढता हूँ