वफ़ाओं का उसे मेरी अगर इक़रार हो जाए हज़ारों ग़म उठाने को ये दिल तैयार हो जाए बहुत मुहतात रहता हूँ मैं अपनी रिश्ता-साज़ी पर कहीं ऐसा न हो फिर से कोई तकरार हो जाए जो तेरा साथ है मुझ को तो क्या ख़दशा तलातुम का ये कश्ती डूब जाए या भले से पार हो जाए बड़ा जादू झलकता है तिरी मसरूर आँखों में नज़र इक देख ले जिस को वही फ़नकार हो जाए ग़मों की भीड़ में कटते नहीं अब रोज़-ओ-शब 'क़ादिर' शिकस्ता दिल के गोशे में कोई झंकार हो जाए