ग़म तो ये भी है कि तक़दीर भी रोई बरसों हाए वो ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर भी रोई बरसों दिल किसी साअ'त-ए-गिर्यां का नविश्ता जिस की हुई तफ़्सीर तो तफ़्सीर भी रोई बरसों आब-दीदा भी था मैं नक़्श-ब-दीवार भी था मुझ को देखो कि ये तस्वीर भी रोई बरसों उस को भी करना पड़ी दश्त-नवर्दी क्या क्या पाँव पड़ कर मिरे ज़ंजीर भी रोई बरसों