वाह क्या हम को बनाया और बना कर रह गए वस्ल का मुज़्दा सुनाया और सुना कर रह गए ले गया शौक़ उस के दर तक फिर कमी हिम्मत ने की हल्क़ा-ए-दर को हिलाया और हिला कर रह गए मैं ने जो अपने दिल-ए-गुम-गश्ता की पूछी ख़बर सर हिलाया मुस्कुराए मुस्कुरा कर रह गए ग़ैरत-ए-दुश्मन की ख़ातिर मेरी ग़ैरत लाई रंग मुझ को महफ़िल में बुलाया और बुला कर रह गए काम रोने से भी 'साक़ी' अपना कुछ निकला नहीं लिक्खा क़िस्मत का मिटाया और मिटा कर रह गए