वाह क्या ख़ूब क़द्र की दिल की न सुनी तुम ने एक भी दिल की ज़ब्त-ए-फ़रियाद में कटी शब-ए-हिज्र शुक्र है बात रह गई दिल की मस्त हैं नश्शा-ए-जवानी से क्या ख़बर आप को किसी दिल की बढ़ता जाता है तूल-ए-गेसू-ए-यार घटती जाती है ज़िंदगी दिल की वो ज़माना अब आया है 'महशर' है हर इक बज़्म में हँसी दिल की