वो एक शख़्स कि मंज़िल भी रास्ता भी है वही दुआ भी वही हासिल-ए-दुआ भी है मैं उस की खोज में निकला हूँ साथ ले के उसे वो हुस्न मुझ पे अयाँ भी है और छुपा भी है मैं दर-ब-दर था मगर भूल भूल जाता था कि इक चराग़ दरीचे में जागता भी है खुला है दिल का दरीचा उसी की दस्तक पर जो मुझ को मेरी निगाहों से देखता भी है ये मेरी सरहद-ए-जाँ में क़दम धरा किस ने कि महव-ए-ख़्वाब हूँ आँखों में रत-जगा भी है उसे वो भूलने लगता है जो उसे भूले 'अता' कि दिल-ज़दा भी और सर-फिरा भी है